शनिवार, 17 जनवरी 2009

एक दरिया था दो बत्तख तैरतीं थी

एक धरती थी। जिस पर दोनों रहते थे। सुनतेथे। कहते थे। जाते थे। आते थे। एक दिन धरती फट गई। कटती- फटती चली गई। देश बनते गए। विश्व बन गया। इसमें अब कई रहते हैं। कोई किसी की सुनता नहीं। कहता नहीं। सच कहूँ तो बीच अब कोई दरिया बहता नहीं।

1 टिप्पणी:

aap svasth rahen.

मेरे बारे में

उज्जैन, मध्यप्रदेश, India
कुछ खास नहीं !