मुड़ गया था मैं अपनी तरफ , और टकरा गया नावजूद से. पर लगी थी खासी . यही तो है ख़ासियत .कि होते हैं तो खूब ही होते हैं बर्बाद. मानो फसल के माफिक हों हम जमीं. खूब मौसम मिलता है खिजां का. पहाड़ से टकरा -२ के आवाज के आने का. में बस थोडा सिसका ही तो था -- 'main अकेले ही में मजे में -------'
नावजूद से टकराने का ख्याल ...अद्भुत !
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