शनिवार, 26 जून 2010

बहुत -सा  सामान-सा  है मेरे पास.काम का तो क्या होगा किसी के. सोचने का ढंग, नजरिया, कवितायेँ, चिट्ठियां, यादें,भूली बातें,काम में ना आई कसमों के मजमून---और अपनी सूरत -सी  सीरत.  इनकी निगरानी में लगे रहते हैं कोई विस्तार से पूछे तो यही बता सकते हैं.

2 टिप्‍पणियां:

  1. एक बार फिर से बेहद फिलासोफिकल !
    'बहुत सा सामान सा ---नज़रिया ,कवितायें ,चिट्ठियां,काम ना आई कसमों के मजमून ...'

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aap svasth rahen.

मेरे बारे में

उज्जैन, मध्यप्रदेश, India
कुछ खास नहीं !