रविवार, 18 जनवरी 2009

नदी घर से गायब है परेशान हूँ मैं

गिल्ली -डंडा , पतंग-बाजी ,भोंरी घुमाना,अंटी खेलना, छिपाछई, सितोलिया , किस्से -कहानियाँ, क्रिकेट अब मेरे लिए जमीन खो बैठे हैं। शोकीन साथी , अब शोकीन नहीं रहे। उनकी आंखों में वो चमक इन खेलों के लिए अब न रही। बैठक की जगह गुम होती चली गई। मैं परेशान हो जाता हूँ अक्सर। मैं कब बड़ा होऊंगा?

2 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय जय भाई , आप तो संवेदनाओं को पंख लगा देते हैं ! तभी तो वो उड़ती फिरती हैं खुले आसमान में !

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  2. डियर अनन्या ,इसे और पहले की टिप्पणियों को सम्मान देता हूँ .इस सपोर्ट से पांवों को ताकत मिलती है .वे चल लेते हैं कुछ और दूर तक .

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aap svasth rahen.

मेरे बारे में

उज्जैन, मध्यप्रदेश, India
कुछ खास नहीं !