दीवाना ही तो था मैं। हर वक्त वो जेहन मैं। फ़िर कविता ने साथ देना शुरू किया। मुझे बैसाखी ने दोड़ना सिखा दिया। पहाडों पर से आवाजें दी । उन जगहों पर खड़ा रहा जहाँ किसी के पैर न पड़े होंगे। 'तब मैंने लिखा, ---'हमको ऐसा शहर अब नहीं चाहिए , ---ऐसी शाम- ओ -सहर अब नहीं चाहिए --'। ------और अब ये कि,' भूख लगती है न प्यास लगती है , --जिंदगी तेरे बिन उदास लगती है '।
और अब ये कि,' भूख लगती है न प्यास लगती है , --जिंदगी तेरे बिन उदास लगती है '। sundar
जवाब देंहटाएंविधु जी , ये उदासी थोड़ा मुस्कराती है . ---जतलाते रहें अपने कहन की छुअन.
जवाब देंहटाएंवीराने हो चाहे सूनसान राहें तानें मिलें या अफसाने
जवाब देंहटाएंकिसी का इंतजार न करना भाई एकला चल देना और मंजिल पर जरुर पंहुचना।
प्रिय जय , ये तुम्हारा 'बेस्ट' नहीं है !
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