सोमवार, 19 जनवरी 2009

शामिल हो मेरे वीराने में तुम नहीं हो तो लगता है

दीवाना ही तो था मैं। हर वक्त वो जेहन मैं। फ़िर कविता ने साथ देना शुरू किया। मुझे बैसाखी ने दोड़ना सिखा दिया। पहाडों पर से आवाजें दी । उन जगहों पर खड़ा रहा जहाँ किसी के पैर न पड़े होंगे। 'तब मैंने लिखा, ---'हमको ऐसा शहर अब नहीं चाहिए , ---ऐसी शाम- ओ -सहर अब नहीं चाहिए --'। ------और अब ये कि,' भूख लगती है न प्यास लगती है , --जिंदगी तेरे बिन उदास लगती है '।

4 टिप्‍पणियां:

  1. और अब ये कि,' भूख लगती है न प्यास लगती है , --जिंदगी तेरे बिन उदास लगती है '। sundar

    जवाब देंहटाएं
  2. विधु जी , ये उदासी थोड़ा मुस्कराती है . ---जतलाते रहें अपने कहन की छुअन.

    जवाब देंहटाएं
  3. वीराने हो चाहे सूनसान राहें तानें मिलें या अफसाने
    किसी का इंतजार न करना भाई एकला चल देना और मंजिल पर जरुर पंहुचना।

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रिय जय , ये तुम्हारा 'बेस्ट' नहीं है !

    जवाब देंहटाएं

aap svasth rahen.

मेरे बारे में

उज्जैन, मध्यप्रदेश, India
कुछ खास नहीं !