बुधवार, 7 जुलाई 2010

रहने दो समुद्र को सोता हुआ.  रहने दो धरती को तैरती हुई   --एक ही जगह पर  . खोने दो आसमान को विस्तार की गोद में. मैं चित्र बना रहा हूँ.-- लैंडस्केप. तुम पीछे से आके लिपट मत जाना,मैं  हिल जाऊंगा. तुम्हारे बदन-सा.

2 टिप्‍पणियां:

aap svasth rahen.

मेरे बारे में

उज्जैन, मध्यप्रदेश, India
कुछ खास नहीं !